Friday, February 5, 2010

क्या भारत सभी धर्मो के लोगो के लिए सुरक्षित है?

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहाँ सभी लोगो को अपना धर्म का अंनुसरन करने का पूर्ण अधिकार है । लेकिन क्या भारत में सभी लोग सुरक्षित है ? बतला हाउस एन्कोउन्टर के ऊपर लगे फर्जी होने का दाग क्या भारत में रहने वाले हिन्दू धर्म के आलावा अन्य धर्मो के लोगो के मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर सकता है । सच अभी तक किसी को नहीं पता है लेकिन कोई भी पार्टी इस मुद्दे को लेकर अपनी राजनितिक रोटी सेंकने से बाज़ नहीं आ रही है।

8 comments:

  1. blog jagat me aapka shiddat se swagat hai
    aapki kalam shresth unchaiyan chhoe

    with regard
    pradeep

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  2. swagat hai hindi blogjagat me shubhkamnao ke sath aapka...

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  3. एक विचारणीय प्रश्न उठाया है आपने ।

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  4. कृपया वर्ड वेरिफिकेसन रूपी अग्रेजी हटायें

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  5. हमारे देश में जिस दिन जमायते इस्लामी एवं जनसंघ और इनके मित्र संगठनों का उदय हुआ था, उसी दिन इस देश के धर्म निरपेक्ष स्वरूप को नष्ट करने की नींव रखदी गयी थी। उस समय या बाद के शासकों ने कभी भी इस बात पर विचार नहीं किया कि साम्प्रदायिक हिंसा, घृणा एवं वैमनस्यता फैलाने वाले कथित सामाजिक संगठनों एवं राजनैतिक दलों की मान्यता समाप्त कर दी जावे। यदि जरूरी हो तो इनकी गतिविधियों पर पाबन्दी लगादी जावे। अन्यथा देश का माहौल खराब नहीं होता। अब इस प्रकार से संगठनों ने इस देश में जडे जमा ली हैं, लेकिन मैं तो यही कहना चाहँूगा कि अभी भी हालात इतने नहीं बिगडे हैं कि उन्हें नियन्त्रित नहीं किया जा सके। आवश्यकता इस बात की है कि युवा पीढी को एवं पुरानी पीढी के लोगों को मिलकर साझा रास्ता बनाना होगा।शुभकामनाओं सहित।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है। इसमें वर्तमान में ४२८० आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८)

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  6. "भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहाँ सभी लोगो को अपना धर्म का अंनुसरन करने का पूर्ण अधिकार है"
    जी बिलकुल सही

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  7. आपके विचारों को पढने की बाद मैंने सोचा आपको एक कविता सुनानी पढेगी:

    मैंने देखा है
    आतंकियों को
    हुआ हूँ गद्दारों से रू-ब-रू.
    मैंने थाली में छेद करने वाले देखे हैं
    देखी हैं हरकतें देश-विरोधी.

    मैंने देखे हैं
    देश के शहीदों के प्रति घृणित भाव.
    मैंने उन सरकारी दामादों को देखा है
    जिनकी आवभगत हर इलेक्शन में होती है
    जो ज़हर उगलते हैं, दूध पीकर भी डसते हैं.
    अल्पसंख्यक होने का पूरा फायदा उठाते हैं
    पड़ोसी मुल्क से दोस्ती बढ़ाने के बहाने
    बसें ट्रेनें चलवाते हैं.
    अपनी पसंदीदा, रोज़मर्रा जरूरत की चीज़
    बारूद लेकर आते हैं.

    मैं देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ने वाले
    जाली नोट छापने वाले
    चेहरों को पहचानता हूँ.
    मैं जानता हूँ
    कहाँ मिलती है ट्रेनिंग आतंक की.
    मैं ही नहीं आप भी जानते हैं
    कहाँ पैदा होती है फसल — देशद्रोह की.

    हम सब जानते हैं
    पर बोलते नहीं
    हम सब देखते हैं
    पर अनजान बने रहने का
    नाटक किये जा रहे हैं
    बरसों से – लगातार.
    हमें बचपन से ही
    कुछ नारे रटा दिए गए हैं
    — हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, आपस में सब भाई-भाई.
    — हमें हिंसा नहीं फैलानी, हमें घृणा को रोकना है.
    — साम्प्रदायिकता से बचो सब धर्मों का सम्मान करो.
    तब से ही भाईचारे की भावना लपेटे हुए
    मैं जिए जा रहा हूँ.
    साम्प्रदायिकता समझी जाने वाली ताकतों से भी बचा हूँ.
    मन में हिंसा के भाव नहीं आने देता.
    घृणा चाहते हुए भी नहीं करता.
    जबकि गली में मीट के पकोड़े तलता है
    रोजाना गोल टोपी धारी.
    नाक-मुँह बंद कर लेता हूँ.
    लेकिन कुछ नहीं बोलता
    किसी से शिकायत नहीं
    क्योंकि ये सबका देश हो चुका है.

    क्या मैं अपनी इस ज़िन्दगी को
    अगले बम-विस्फोट तक बचाए हुए हूँ.
    क्या मैं हमेशा की तरह इस बार भी
    अपने भावों पर ज़ब्त करूँ.
    कुछ ना बोलूँ.
    शांत रहने का,
    शांत दिखने का एक और नाटक करूँ.
    मीडिया की फिर वही बकवास सुनूँ —
    "बम विस्फोटों के बाद भी
    आतंकियों से नहीं डरी दिल्ली
    बाज़ार फिर खुले,
    लोगों ने रोजमर्रा का सामान खरीदा.


    छिद्र टोपीधारी
    भारतमाता के दामन में
    छिद्र कर चुके हैं न जाने कितने ही.
    अब भरोसा नहीं होता
    कि पड़ोस के शाहरुख, सलमान, आमिर को
    अपने घर बुलाऊँ या उनके घर जाकर ईद-मुबारक करूँ.

    ......

    जामिया के कुलपति
    जो आज पैरवी कर रहे हैं
    उन मुजरिमों की जो प्रमाणतः आतंकी हैं.
    एक घटना पोल खोल देगी
    जामिया यूनिवर्सिटी की
    देश के प्रति वफादारी की

    कारगिल के समय
    शोक में था जामिया
    गुजर गए थे उस दौरान उनके क्षेत्र के कोई मियाँ.
    शोक प्रकट किया गया.
    उसी समय हिंदी विभाग के प्रमुख
    अशोक चक्रधर जी ने कहा
    अब कारगिल के उन शहीदों के प्रति भी
    दो मिनट का मौन रखें जिन्होंने देश के लिए जान गँवायी.
    पर उर्दू अरबी विभाग के प्रोफेसरों को
    बात हज़म नहीं आयी.
    मजबूरी में मौन रखने के बाद
    बोले — "अब गली में फिरने वाले
    उन कुत्तों के लिए भी मौन रखवाइये.
    जो अभी-अभी मारे गए हैं."

    क्या कहती हैं ये घटना
    क्या इस टिपण्णी से
    सब प्रकट नहीं हो जाता.
    कि कहाँ कैसी शिक्षा दी जा रही है.
    कहाँ तैयार हो रही है
    देशद्रोह करने वालों की पौध.

    मैं जान गया हूँ.
    आप जान गए.
    क्या सरकार में बैठे हमारे नुमायिंदे नहीं जानते
    पुलिस प्रशासन नेता सब जानते हैं.
    लेकिन चुनाव सर पर बने रहते हैं.
    उन्हें सेंकनी होती हैं रोटियाँ 'वोटों की'
    उन्हें हमारे वोटों से ज़्यादा
    टुकड़ों पर बिकने वालों के वोटों की परवाह रहती हैं.

    तभी तो आज भी
    लालू, मायावती, मुलायम
    राहुल, सोनिया इस आतंक की लड़ाई में
    सख्त बयानबाजी से ही काम चला रहे हैं.
    विस्फोटों में स्वाहा हुए परिवारों को
    खुले दिल से नोट मदद बाँट रहे हैं,
    मदद बाँट रहे हैं. ...

    कुछ सच मैंने आपके सामने रखा और अब आप बताएँ कि क्या भारत में सभी लोग सुरक्षित है ?

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